
प्रेम अपने आप में ही कितना खूबसूरत शब्द है , प्रेम को महसूस करो तो शाँँति मिलती है , प्रेम को जियो तो उमंग मिलती है , प्रेम से दूर हो जाओ तो बैचेनी मिलती है l
यह प्रेम है ही ऐसा तत्व , जी हाँ प्रेम तो एक तत्व ही है जिसके बिना यह ब्रह्मांड की रचना ही संभव नहीं है , यह संसार चलता ही प्रेम तत्व से है , अपनी दृष्टि उठा कर देखिए तो सुबह आंख खुलने से लेकर रात्रि को सोते तक आप दिव्य प्रेम से घिरे हुए होते हैं ।
कैसे ? यह प्रकृति आपको बिना कुछ चाहे कितने रुप में नित्य प्रेम देती जा रही है।, सूर्य बिना यह देखे कि कौन अमीर है -कौन गरीब , कौन सच्चा -कौन झूठा, चाहे जो हो सबको अपना प्रकाश, अपनी ऊर्जा बराबर रुप में ही बांटता है । वैसे ही इस ब्रह्मांड में बहती हुई हवाएं वो भी सभी मनुष्यों , पेड – पौधो , पशु -पक्षियों को समान रूप से ठंडक पहुंचाती है, प्राण ऊर्जा का दान करती है। वैसे ही नदियों में बहता पानी हो या वृक्षों पर लगे फल फूल सबके लिए हैं, चिड़ियों की चहचहाहट हो या चांद के द्वारा बिखेरी गई चांदनी सभी को समान रूप से शांति प्रदान करती है । यही सब है जो साबित करता है कि ब्रह्माण्ड में चारों और प्रेम तत्व ही है , प्रेम नित्य है , निश्छल है , उन्मुक्त है I
फिर हम मनुष्य इस प्रेम की परिभाषा को इतना संकुचित क्यों कर देते हैं । हम इस प्रेम की सीमाएं तय कर देते हैं , इस प्रेम को धर्म , जाति , पद , और अनगिनत भेदों के अनुसार विभाजित कर देते हैं । कुछ न सूझा तो प्रेम को एक स्त्री और पुरुष के मध्य के रिश्ते तक ही सीमित कर बैठे । फिर कहते हैं प्रेम खूबसूरत नहीं , प्रेम तो स्वच्छंद है उन्मुक्त है तभी खूबसूरत है जैसे ही प्रेम का सीमांकन किया प्रेम का रुप बदल गया और वो कुछ और ही बन गया और वो जो कुछ भी बन गया वह भद्दा हो गया उसकी निश्च्छल खूबसूरती समाप्त होने लगी शायद तभी हममें से कुछ प्रेम को अलग तरह से बखान करने लगे । एक दिन मैं खुद कहीं सुन रही थी कि एक पति अपनी पत्नी को बोलता है अब तुम पहले जैसे खूबसूरत नहीं लगती जैसे शादी से पहले दिखती थी । यहाँ वास्तव में बात किसी स्त्री के रूप की हो रही है परंतु हम खुद सोचें कि वह रूप भी अब खूबसूरत क्यों नहीं लग रहा ?
अरे जिस स्त्री को विवाह के पूर्व तुम देखते थे वह स्वतंत्र थी , जो स्वतंत्र है वह खूबसूरत है , स्त्री को ,पत्नी , बहु , भाभी , माँ कई बंधनों में बांधा फिर कहा अब तुम पहले जैसे खूबसूरत नहीं रहीं ।
प्रेम का जो भी रुप हो चाहे वह प्रकृति का हो , या मनुष्य का , या पशु – पक्षी का जब भी प्रेम स्वतंत्र है वह खूबसूरत है ।
- Suchita Chouhan
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