Alumni Meet Ki Subah

अलुमनाई मीट की सुबह

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लो आखिर आज आ ही गया वो दिन जिसका साल भर से इंतज़ार रहता है, जिसमें सिर्फ नवोदय के दोस्त और नवोदय की बातें होती हैं, जिसमें हॉस्टल के सात साल एक ही दिन में बुलेट ट्रेन की तरह तेज़ी से सफ़र करते हैं।

एक खूबसूरत एहसास मन में समेटे कुछ लोग आते हैं और अपनी खुशबु से पूरा माहौल चहका देते हैं। कुछ सदाबहार खास चेहरे मुस्कान लिये उनका स्वागत करते हैं तो कुछ जाने कितने सालों से बिछड़े अपने साथियों को देखकर ख़ुशी के मारे आँसू तक बहा देते हैं।

लगता है इतने कम वक़्त में खुशियाँ कैसे आकर टकराती हैं। चहल-पहल से भरे लोग अपनी यादों को ताज़ा करते हैं। कई लोग तो मैन गेट में पहला कदम रखने के साथ ही सम्मोहन से इतना भावुक हो जाते हैं कि पांच मिनट तक एक शब्द भी नहीं निकालते और जब बोलते हैं तो विस्मय भरा पहला वाक्य यही होता है कि यार नवोदय पहले से बहुत बदल गया बिल्कुल भी पहचान नहीं आ रहा।

फिर शुरू होती है तलाश अपने पसंदीदा स्थानों की, अब इसमें क्लास, मेस या हॉस्टल ही नहीं होते बल्कि कुछ ऐसे स्थान भी जुड़े होते हैं जो उन्हें बदलाव का एहसास दिलाते हैं। घास-फूस और झाड़ियों के स्थान पर सुंदर बड़े-बड़े पेड़ देखकर तो यकीन ही नहीं होता कि हमने कभी इन्हें लगाए भी थे।
अब बीस साल पुरानी चीज़ें जब सामने आएँगी तो ऐसा तो होगा ही। याद आते हैं वो शॉर्ट-कट रोड जो हॉस्टल से सीधे मेस और स्कूल जाया करते थे। उनमें चलकर देखो तो याद आते हैं वो बीते दिन जब रात में भी खाना खाने के बाद गाते गुनगुनाते हुए आधा एक किलोमीटर का सफ़र सिर्फ जूठी थाली धोने के लिये किया करते थे।
ऊंची-ऊँची दीवार देखकर जहाँ पहले सेंट्रल जेल का एहसास होता था, अब अपने अधिकार क्षेत्र की भावना जगाता है।

चलते चलते फिर याद आता है पानी की टंकी के पास का एक बड़ा टाँका जिसके पास दानवी पाइप से नहाया करते थे जिसकी धारा इतनी तेज़ होती थी कि उसके नीचे खड़े होते ही नहाकर हो जाता था। बिल्कुल उसी स्थान में गर्ल्स बास्केट बाल ग्राउंड देखकर जेहन में आता है कि यहाँ तो जूनियर्स के बेस बॉल खेलने का कंकरीला और असमतल मैदान था और एक बार जब इसके बैट का हैंडल टूटा तो छटवीं के कई बच्चों का दिल टूट गया था क्योंकि फिर दोबारा कभी बैट नहीं आया और ना ही कभी बेसबॉल खेलने को मिला।

खैर, पानी की टंकी के पास बड़ी बड़ी चट्टानें अब भी वैसे ही अपने स्थान में सुरक्षित हैं क्योंकि इन्हें कोई अभी भी नहीं सरका सका। वैसे भी उस समय सभी के लिये यह स्थान किसी पर्यटन स्थल से कम नहीं था क्योंकि उस समय सबसे ज़्यादा फ़ोटो इसी शूटिंग स्पॉट में खिंचवाई जाती थीं।

कई सारी नई इमारतें और बन चुकी हैं जिनका पहले कभी अस्तित्व ही नहीं था। अरे देखो तो सही मेस भी डबल हो गया है जिसमें टीवी लगी हुई हैं। अरे मगर गर्ल्स बॉयस अलग-अलग खाना। ओह, वही दिन बेहतर थे जब भले ही नीचे बैठकर खाते थे लेकिन साथ में होते थे। हाँ कभी हलकी फुलकी नोंक झौंक भी हो जाती थी मगर तब तो खाना खाते समय कभी टीवी की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। और होती भी कैसे लड़के और लड़कियां खाते समय एक दूसरे को देखकर ही टाइम पास कर लिया करते थे। अब ऐसा लगता है वास्तव में वही था सही Co-Education… खैर हमें इससे क्या।

अरे भई, स्कूल तो कितना सजा हुआ है। पहले की तरह तो बिलकुल भी नहीं रहा। जगह-जगह फ़ोटो, वाल पेंटिंग और शुरुआत में ही एक खूबसूरत मूर्ति। वाह देखकर ही मज़ा आ गया। देखो ना वहीं स्कूल में पढ़ाई और खेलकूद में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के नाम लिखें हैं।

अरे, अरे इसमें मेरा नाम तो कहीं नहीं है। अरे हाँ मैंने तो कोई काम किया ही नहीं ऐसा जो इसमें नाम लिखवा पाता। ना तो बहुत पढ़ाई की, ना ही बहुत अच्छा खेला। वैसे भी हम थे ही ऐसे कि पढ़ाई में ना शुरू के सबसे तेज़ पढ़ाकू में थे और ना ही पीछे की सुपरहिट में नाम था। ना खेल में कभी नेशनल गए और ना ही किसी कल्चरल में अपनी पहचान बना सके। हम तो अपने टाइम में लड़ाकू भी नहीं रहे जो टीचर्स को परेशान किया करते या जूनियर्स को सताते। न तो किसी लड़की पर कमेंट की और ना ही कभी मेस के कारनामें करने की हिम्मत जुटा पाये तो फिर हमें कोई पहचानेगा क्यों। आखिर पहचान बनाने के लिए भी कुछ तो हो…

हम तो अपने स्कूल के ऐसे छात्र थे जिसपर ना तो सामने से सीधे नज़र पड़ती और ना ही पीछे की बेंच में कभी दिखाई देते। अब तो पक्का यकीन मानो की नवोदय में सब मुझे भूल चुके हैं लेकिन इस बात से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि मुझे तो नवोदय याद है और यही एक वजह मुझे नवोदय जाने के लिए बहुत हैं।

-अज़ीम शाह
ज न वि कान्हीवाड़ा, म प्र।।’

आशा है कि आपको यह ब्लॉग उपयोगी और आपके दिल के करीब लगा होगा। यदि आपको कुछ इसमें अपने नवोदय सा लगता है तो कृपया इसे अपने नवोदय मित्रों और समूह के साथ साझा करें जो नवोदय प्रेमी हैं ताकि उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ सके। कमेंट में अपनी राय अवश्‍य दें ताकि हम ऐसे और बेहतर ब्‍लॉगआपके साथ शेयर कर सकें।

3 thoughts on “Alumni Meet Ki Subah”

  1. Laxminarayan Golhani

    दिल के भावों को बड़े खूबसूरती से बयान किया है भैया

    1. शुकिया, हम सभी नवोदय से हैं इसलिये ही ये सब समझ पाते हैं और महसूस करते हैं नवोदय की फीलिंग्‍स…

  2. Shailendra sahu Jnv

    हम नवोदयन्स की कहानी ही कुछ अद्भुत और निराली है जहाँ भी बैठ जाते है अपनी एक अलग ही पहचान बना लेते है हम सब नवोदयन्स के विचार एक जैसे में मेल खाते है हर एक पल हर एक लम्हा हम महसूस कर पाते है वो सात साल सात जन्मों की तरह प्रतीत होते है मानो एक सपना सा होता है हम नवोदयन्स के लिए.!!💙💚❤️💛

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