(भाग-2)
एक छोटे कस्बे में राहुल छुट्टी बिताने सौरभ के पास था। सौरभ स्कूल जा चुका था और राहुल कमरे में लेटा हुआ समय बिता रहा था। वह कुछ देर बाहर निकलकर पच्चीस तीस मीटर दूर स्थित गर्ल्स स्कूल में देखने लगा। सामने आँगन में लगे गमलों में से एक को देखकर उसे सुमन याद आ गई थी जिसका अब तक कोई पता नहीं था। वह सोच रहा था तभी उसका मोबाइल घनघनाया।
“गुड मॉर्निंग कैसे हो?”
राहुल ने मोबाइल में मैसेज पढ़ा और बिना जवाब दिए जेब में रख लिया। अभी भी उसकी नज़र गुलाब की तरफ ही थी।
“तुम, तुम नहीं सुधरोगे राहुल। क्या ज़रूरत थी यहाँ आने की?”
“यार मैं क्या करूँ। तुम्हारे बिना मेरी होली पूरी कैसे होती?” कहते हुए राहुल ने सुमन के चेहरे में हौले से गुलाल लगा दिया। उसके हाथ अपने गाल में स्पर्श होते ही सुमन ने अपनी आँखें बंद कर ली। वह इतनी खुश हो गई थी कि अगर भूमिका और निशा मौजूद ना होती तो उसी समय उसे किस करते हुए बाहों में भर लेती लेकिन इस समय उसकी बेस्ट फ्रेंड ही दुश्मन बनी हुई थीं।
“हैप्पी होली राहुल।” कहते हुए सुमन ने उसे पहले तिलक लगाया जैसे वह अपने मन के राजकुमार का राज्याभिषेक कर रही हो। उसने मुस्कुराते हुए राहुल के गाल में गोल-गोल घुमाते हुए गुलाल लगाना शुरू कर दिया। अपने चेहरे में सुमन के हाथ फिराते ही राहुल को लगा जैसे उसे अपने सात साल का अवार्ड मिल रहा हो। वैसे भी किसी लड़की का हाथ चेहरे में पड़ते ही शरीर के सारे हॉर्मोन इतने सक्रिय हो जाते हैं जैसे उन्हें फर्राटा दौड़ के स्टार्टिंग पॉइंट में खड़े कर दिया गया हो।
उसने अपने में आये हाथ को पाकर धीमे से चूमने की कोशिश की जिसे देखकर भूमिका ने बुरा सा मुँह बनाया लेकिन राहुल और सुमन दोनों को इसकी परवाह नहीं थी। तभी भूमिका ने खाँसने का नाटक किया। राहुल ने झेंपते हुए तुरंत अपने हाथ में गुलाल लिया और भूमिका के चेहरे में लगाने लगा।
“तुझे इतनी जलन हो रही थी कि बीच में ही डिस्टर्ब कर दिया।” वह मन ही मन सोच रहा था।
“देखा मेरे खाँसने का असर।” भूमिका भी राहुल को ताने दे रही थी लेकिन वह मुंह से केवल ‘हैप्पी होली राहुल।’ ही कह पाई थी।
राहुल अब निशा की तरफ बढ़ा और उसे बड़े आराम से गुलाल लगाया। वह सोच रहा था कि बेवक़ूफ़ शिवम शर्त के कारण इतनी प्यारी लड़की को छोड़कर दुबे सर की पूँछ फिट करने की कोशिश में भीड़ में घूम रहा है अगर वह यहाँ साथ होता तो कितना अच्छा होता। शिवम को डर था कि सुमित से शर्त ना हार जाए जबकि सुमन से मिलने के लिए राहुल तो सैकड़ों शर्त हार सकता था।
“शिवम नहीं आएगा?” भूमिका ने पूछा।
“पता नहीं, उसके मूड का कोई ठिकाना नहीं। अभी होली की भीड़ में बेचारा व्यस्त है या शायद भांग ने उसे भटका दिया है। मैंने कहा था लेकिन वह…”
“ठीक है जाने दो फिर…।”
“दी, अब चलें हम लोग…?” निशा को शायद सुनकर अच्छा नहीं लगा इसलिए वह वापस होना चाहती थी जबकि सुमन कुछ देर और रुकने के मूड में थी। उन दोनों के बीच भूमिका उलझकर रह गई थी।
“ठीक है।” सुमन का जवाब सुनते ही तीनों हॉस्टल की तरफ बढ़ने लगे।
“तुम रुको।” कहते हुए राहुल ने सुमन का एक हाथ थाम लिया। तब तक निशा और भूमिका कुछ कदम आगे निकल चुके थे।
राहुल सुमन के इतने करीब पहुँच चुका था कि उसका पूरा शरीर सुमन को स्पर्श करने से केवल एक इंच के फासले पर था।
“हैप्पी होली सुमन।” उसने सुमन के कंधे पर हाथ रखकर उसके गालों को बारी-बारी से किस किया।
सुमन कुछ पल के लिए अपने स्थान में जड़ हो गई थी। शायद वह भी चाहती थी कि राहुल उसे किस करे या इतने प्यार से पेश आये। वह इस क्षण को अपने जीवन में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहती थी। यदि कोई फोटोग्राफी कर रहा होता तो यह सीन उसे बेस्ट फोटोग्राफर का अवार्ड ज़रूर दिला देता। दो स्कूल प्रेमी होली के दिन रंगों से सने हुए जबरदस्त रोमांटिक अंदाज़ में थे। इसे देखकर यशराज को भी अपनी फिल्में फीकी लगने लगती। वह तो केवल इस सीन के लिए एक फिल्म बना दिया होता।
“सुमन! नहीं चलना है?” एक बार फिर भूमिका की आवाज़ ने उसे खुशियों से बेदखल कर दिया था। भूमिका के ऐसे ही रूखे स्वभाव के कारण कोई पास नहीं जाना चाहता था। भले ही उसे अच्छा लगता हो लेकिन ऐसा स्वभाव लड़कियों के लिए अभिशाप की तरह होता है।
“हाँ, हाँ रुको ज़रा।” सुमन ने रोकने की कोशिश की लेकिन भूमिका के कारण निशा के भी कदम नहीं रुक रहे थे।
“राहुल प्लीज।”
“नहीं कुछ देर और।”
“प्लीज।”
“सिर्फ कुछ देर।” राहुल मदहोश हुए जा रहा था।
“अरे पीटी मैम आ रहीं हैं छोड़ो।”
राहुल ने झटके से सुमन को छोड़ा और आँखें फाड़कर आसपास देखने लगा लेकिन पीटी मैम तो कहीं भी नहीं थी। जब तक उसका ध्यान सुमन की तरफ जाता, वह दौड़ लगाकर भूमिका के पास पहुँच चुकी थी। उसे दूर से मुस्कुराते देखकर राहुल ठगा सा रह गया।
“बाय।” भूमिका ने जाते-जाते हाथ हिलाया।
“तुझे तो मैं बाद में देख लूँगा मोटी।” वह मन ही मन भूमिका को कोस रहा था जिसकी जल्दबाजी से उसे जल्दी जाना पड़ा लेकिन भूमिका ही थी जिसके कारण सुमन इतनी देर उसे मिल पाई थी।
तभी फ़ोन घनघनाया। राहुल ने तुरंत काट दिया। दोबारा फ़ोन आने पर आखिरकार उसने फ़ोन उठा ही लिया।
“हाय, कैसे हो राहुल?”
“ठीक हूँ और तुम सुनाओ।”
“पहली बार में तुमने फ़ोन क्यों नहीं उठाया?”
“अरे मैं लगाने ही वाला था नीलम लेकिन तुमने दोबारा कॉल कर दिया।”
“ओके ठीक है लेकिन तुमने तो मेसेज तक नहीं किया मुझे। कब तक हो तुम वहां?”
“अभी कुछ दिन और; फिर मिलते हैं ना। पता है यहाँ सामने गमले में ढेर सारे गुलाब ही गुलाब हैं सारे के सारे तुम्हारी तरह खूबसूरत।” सारे के सारे गुलाब में राहुल आँगन के गुलाब के पास खड़े होकर गर्ल्स स्कूल के गुलाबों का भी ज़िक्र कर रहा था जो अभी नज़र नहीं आ रहे थे।
“और…” नीलम ने बड़े प्यार से पूछा। लड़कियों की यही तो कमज़ोरी होती है कि उनकी तारीफ़ करके आप आसानी से मना सकते हैं।
“और मेरे दोस्त ने एक किताब लिखी है ‘मिलेनियम नाइट्स’ उसे पढ़ रहा हूँ।”
“अरे वाह तुम्हारा दोस्त राइटर भी है।”
“हाँ ऐसा ही समझो।”
“मतलब?”
“अभी उसने केवल लिखी है पब्लिश होना बाकी है।” “अच्छा, अच्छा फिर तो हम भी वेट करते हैं उस बुक का। जब तुम्हारे दोस्त ने लिखी है तो पढ़ना तो पड़ेगा। तुमने पढ़ी?”
“पूरी नहीं लेकिन हाँ हॉस्टल की ढेर सारी यादें हैं उसमें।”
“हॉस्टल लाइफ फिर तो मैं ज़रूर पढ़ूंगी। अपने दोस्त से कहो कि जल्दी करे। हम हॉस्टल में रहते हुए ही उसे पढ़ना चाहते हैं।”
“ठीक है कह दूँगा।”
“कह दूंगा नहीं अभी कहो या फिर मुझसे बात कराओ।”
“वो अभी नहीं है, स्कूल गया है पढ़ाने।”
“फिर तुम अकेले कैसे हो अभी? बोर नहीं होते?”
“अरे नहीं बहुत सारा लिखा है उसे ही पढ़ने में टाइम निकल जाता है अभी।” राहुल उसे आखिर कैसे बताता कि उसका असली टाइम तो सामने गर्ल्स स्कूल के गुलाबों को देखने में बीत जाता था। यदि वह ऐसा कुछ बताता तो नीलम बुरा नहीं मान जाती।
“अच्छा राहुल अपना ख्याल रखना।”
“और कुछ।”
“जल्दी आ जाओ प्लीज।”
“हाँ ठीक है, बाय, सी यू।” राहुल ने फ़ोन रखा और गर्ल्स स्कूल की तरफ देखने लगा जहाँ शार्ट ब्रेक पर लड़कियाँ पानी पीने कमरे के ठीक सामने स्थित हैंडपंप की तरफ आ रही थीं।