कौन मिस करता है सबसे ज़्यादा?
अनुशासन प्रिय होने के कारण, लड़कियाँ परीक्षा में लड़कों से आगे निकल जाती हैं। ज़िम्मेदार भी बहुत होती हैं, इसलिये समाज या यूं कहें, सारे लोग उन्हें अपने ढंग से इस्तेमाल तो करते ही हैं, अपना काम निकालकर मज़े भी लेते हैं।
सुमन भी और बेटियों की तरह खूब पढ़ी और अपने माता-पिता को खुश करते हुए अच्छे नंबर से पास होते चली गयी।
बारहवीं की परीक्षा देकर जब वह हॉस्टल से निकली तो मानो प्रतिज्ञा ही कर ली, कि अब दोबारा कभी वापस लौटकर नहीं आयेगी। इसकी वजह शायद कुछ कड़वी यादें थीं जो उसके जेहन में नफ़रत के बीज बो चुकी थी। आखिरी समय में तो उसे हॉस्टल के नाम से ही चिढ़ हो गई थी।
खैर एक साल बीता और उसकी एक सहेली ने बताया कि एलुम्नी मीट (मिलन समारोह) में चलते हैं, उस दिन वहां हम बाकी लोगों से भी मिल सकते हैं, लेकिन सुमन ने यह कहकर टाल दिया कि जब वह भी औरों की तरह किसी जॉब में लग जायेगी तब जायेगी। इस तरह एक दो साल बीत गये।
तीसरे साल उसे कालेज के साथ ही एक शानदार जॉब मिल गया। ऑफिस में काम का बहुत बोझ था इसलिये बॉस ने रविवार को भी आने कहा।
उसने बॉस को बताया लेकिन… बॉस अगर किसी की बात मानने लग जाये तो फ़िर बॉस कैसे होगा। उसने तुरंत कहा, “सुनो, मैं तुन्हें रोक नहीं रहा मगर दो दिन के अंदर पूरा काम निपटाना है, और अगर तुम नहीं आई तो ये लोग पूरा कैसे कर पायेंगे, कहो तो इन सबको भी छुट्टी दिये देता हूँ।”
वह सोच में पड़ गई, उसे लगा कि उसके बिना तो ऑफिस का पूरा काम ही रुक जायेगा। तो उसने “सॉरी सर” कहा और चुपचाप निकल गई। उसे पता था कि समय पर काम नहीं हुआ तो सारा दोष उसके सिर पर ही मढ़ दिया जायेगा इसलिये इस बार का प्लान केन्सिल।
एक साल और बीता। वह ऑफिस में एक महीने पहले ही छुट्टी की अर्जी लगा चुकी थी। उसे याद था कि इस बार तो जाना ही है इसलिये पहले से ही सोचकर रखा था लेकिन घर में मां को बता नहीं पाई।
दो-तीन दिन रह गये, तो मां को बताया मगर इस बार भी किस्मत उसके मज़े लेने से बाज़ ना आई। तुरंत मां ने कहा, “बेटा पहले तो बता दिया होता। संडे को एक परिवार तुझे देखने आने वाला है, मुहुर्त अच्छा था मैने मना नहीं किया.” अब उसे लगा कि मुहुर्त तो सच में अच्छा है तभी यहॉंउसके घर मेहमान आ रहे हैं, वहॉं मिलन समारोह हो रहा है। मुहुर्त तो केवल उसके लिये खराब चलते हैं। एक बार फ़िर उसने जाने का इरादा छोड़ दिया और घर के कोपभवन में जाकर चुपचाप आँसू बहा लिये।
पढ़ते-पढ़ते आप सोच रहे होंगे कि उसने हार मान ली, तो जनाब थोड़ा रुकिये, इंतजार करिये आने वाले वक्त का।
उसके अंदर मिलन समारोह में जाने की आग बुझ सी जाती। फिर भी उसमें एक चिंगारी थी जो बार-बार सही समय की तलाश कर रही थी।
इसके बाद एक साल और बीत गया, शादी वाला साल था, इसलिए अपनी मर्जी नहीं चल सकती थी। बाद के दो-तीन साल तो बच्चों को लेकर परेशान रही। जब बच्चे स्कूल जाने लगे, तो उसे सही समय मिल गया जिसका उसे इंतज़ार था, मगर सत्यानाश हो इग्ज़ाम लेने वालों का जो इस महीने ही एसए वन, एसए टू के नाम से टाइमटेबल पकड़ा देते हैं। अब बच्चों का काम, उनका इग्ज़ाम ज़्यादा हो जाता है, इसलिए एक साल और बीत गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि निर्दयी समय के चंगुल से कैसे निकले। समय की मार सबसे पहले उस पर ही पड़ती थी।
उसके अंदर की चिंगारी अब भी कहीं थी जो भड़कने के लिये बेताब थी। अब उसने एक कड़ा फ़ैसला लिया कि इस बार, आर या पार। किसी भी कीमत पर वह इस बार जाकर ही रहेगी। इसके लिये उसने खुद को चैलेंज किया ताकि वह रुके ना। अपने और बाकी साथियों को फोन से बात करके तैयार किया और फ़िर उन सभी की योजना बन गयी। इस तरह उसने सालों के महत्वाकांक्षी मिलन समारोह के लक्ष्य को पाया।
आप पहले ही समझ गये होंगे कि ऐसा कुछ हुआ होगा, मगर ऐसा कुछ नहीं था। आपकी योजना जितनी बेहतर बनती हैं, उसे नाकाम करने वाले उससे बेहतर योजना बना लिया करते हैं। वहां जाने के ठीक कुछ दिन पहले ससुर जी की तबियत बिगड़ जाती है और फ़िर शुरू होता है परिवार के खास मेहमान यानी रिश्तेदारों के आने-जाने का सिलसिला। ऐसे में भला वह घर से कैसे जा सकती थी। भले ही आप कितना ही मिस क्यों ना करें, भले ही आप कितना ही कह लें, लेकिन सबसे ज़्यादा मिस करते हैं ये लोग जो पूरी कोशिश कर भी किसी न किसी कारण आ नहीं पाते – नवोदय।