November ki wahi sardi mubarak

November ki wahi sardi mubarak

DINESH KUMAR DROUNA

नवम्बर की वही सर्दी मुबारक

तुम्हें इस रब्त की बरसी मुबारक

मुबारक हो तिरे हाथों को मेहंदी

हमारी आँख को सुर्ख़ी मुबारक

अगर दुनिया ही थी ख़्वाहिश तुम्हारी

चलो तो फिर तुम्हें वो ही मुबारक

ज़माने भर का हो कर रहने वाले

तुझे रिश्तों की आसानी मुबारक

हवाले ख़ुद को तुम ने कर दिया इस

नए मल्लाह को कश्ती मुबारक

मकाँ में फिर मकीं बदले गए हैं

मकाँ को फिर नई तख़्ती मुबारक

  • DINESH KUMAR DROUNA

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