safar ko phir wahin le ja rahe hain

सफ़र को फिर वहीं ले जा रहे हैं

safar ko phir wahin le ja rahe hain

सफ़र को फिर वहीं ले जा रहे हैं

ख़ुतूत उन के उन्हें लौटा रहे हैं

हमारी मौत के क्या फ़ाएदे हैं

हम अपने आप को समझा रहे हैं

कहाँ के राहबर कैसी मसाफ़त

हमें ये लोग बस टहला रहे हैं

ग़ज़ल शेर-ओ-सुख़न कुछ भी नहीं बस

हम अपने आप से बतला रहे हैं

ज़रा सी बात है कैसा तमाशा

उन्हें जाना था और वो जा रहे हैं

सितम ये है कि जिस को छोड़ना है

उसी को साथ में ले जा रहे हैं

ये कह कर जो भी चाहोगे वो होगा

वो अपनी बात ही मनवा रहे हैं

वो जो रहते हैं इक दरिया किनारे

वो हम को तिश्नगी समझा रहे हैं

उजालों के लिए खोली थी खिड़की

मगर घर से अँधेरे जा रहे हैं

  • DINESH KUMAR DROUNA

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