रविवार को पालक-शिक्षक बैठक थी। इस दिन माता-पिता अपने बच्चों से मिलने आते कुछ समय बिताते और उनके साथ गार्डन में पेड़ के नीचे भोजन करते।
लगभग ग्यारह बजे एक कार गेट के पास रुकी। उसमें दो बच्चे और उनके माता-पिता उतरे। गेट के अंदर पहुंचते ही ऊंचे पेड़ देखकर अचानक उसे कुछ याद आया और वह कुछ तलाश करने लगी। बच्चे भी उसके पीछे-पीछे हो लिये, फ़िर वह पानी की ऊंची टंकी के पास एक पेड़ के नीचे बैठ गयी।
आसपास का शांत माहौल देखकर बच्चे कह रहे थे,
“मम्मी देखो ना कितने बडे-बडे पेड़ लगे हैं यहां। ये गुलमोहर है ना मॉम, छोटी-छोटी पत्तियां हैं इसकी.”
“ये तो एकदम गार्डन की तरह है मम्मी।
वाव, भैया आज तो रियली बडा मज़ा आयेगा यहां, कितनी प्यारी जगह है या…र, लगता ही नहीं कि कोई स्कूल भी होगा यहां।”
“हां रे सही कहा तूने, सुन तो, मेरी फोटो ले ना जल्दी केमरे से,”
“एक और इस साइड से…”
“भैया, सामने के दांत भी आ रहे, थोडा कंट्रौल…”
“ओह सौरी, नाव ओके?”
“यस यस यस.” कहकर उसने दो चार क्लिक एक साथ कर दिये।
वहीं नीचे कुछ बिछाकर एक और परिवार पहले से बैठा हुआ था। एक बच्ची अपनी मम्मी के साथ लंच कर रही थी। जब उसने उन्हें पहली बार कैम्पस के ग्राउंड में किसी मम्मी को सिसकी लेते देखा तो उसे और हैरानी ने घेर लिया।
ऐसे में ना चाहकर भी वह बोल पडी, “आंटी, क्या हुआ आपको? आपको अच्छा नहीं लग रहा यहां?”
“नहीं बेटा ऐसा कुछ नहीं है।”
“तो फ़िर बोलिये ना क्या हुआ माम?” उनकी बच्ची मां के पास आकर पूछने लगी।
उस बच्ची ने कहना शुरू किया, “यहां ना अक्सर बच्चे रोते हैं। खासकर तब जब सनडे को उनके मम्मी-पापा मिलने आते हैं, लेकिन आपके बच्चे तो नहीं रो रहे फ़िर आप…?” उसने बडे प्यार से पूछा।
“अरे कुछ नहीं बस ऐसे ही, पता है जब हम यहां पढते थे, तब मैने इस पेड़ को लगाया था और पानी भी डालते थे बालटी से ला लाकर. अठारह उन्नीस साल बाद कितने बडे हो गये ये सब।”
अब उन्होंने आसपास के कुछ और पेड़ बताये जो उनकी सहेलियों ने लगाये थे। उनकी बातें सुनकर आसपास खामोशी सी छा गयी।
तभी किसी की आवाज़ आयी, “दीदी, वहां हाल में आप लोगों को बुला रहे हैं. आप एक्स-स्टूडेंट हैं ना। वहां प्रोग्राम स्टार्ट हो गया आप लोगों का।
अब वे तुरंत वहां से एमपी हाल चल दिये।
ऐसे और विरले संवेदनशील लोगों से यदि आपको मिलना है, तो फ़िर आईये एलुमनी मीट में …. दिसम्बर को नवोदय. आपका स्वागत है।
Nice