Holika Dahan : Navodaya Hostel Life Story

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“बोर्ड के पेपर चल रहें हैं, उसका क्या?“ विवेक ने टोका।

“तो क्या हुआ, अभी तो गैप है।“ शिवम ने कहा।

“पेपर! पेपर तो हर साल आयेंगे।“ राहुल मुस्कुराया।

“तो होली क्या जीवन में एक बार ही आती है?“ विवेक ज़ोर से चीखा।

रात में राहुल, सौरभ, मोहित, विवेक, सुदीप और शिवम कमरे में बैठकर होली मनाने की योजना बना रहे थे। एक दिन पहले से उनके दिमाग ने रंगों से खेलना शुरू कर दिया था।

“होली तो आएगी लेकिन इस बार धाँसू होली मनाना है। अब तक जो नहीं कर पाए वह भी करना है।“ शिवम टहलते हुए विवेक के सामने खड़ा हो गया था।

“रंग बरसे…भींगे चुनरवाली रंग बरसे।“ गाते हुए शिवम उसके गाल में गुलाल लगाने का नाटक करने लगा।

इस बार विवेक से रहा नहीं गया और शिवम का हाथ दूर हटाते हुए शर्म से मुस्कुराने लगा। मुस्कान के रूप में उसकी सहमति मिल चुकी थी। बाकी
काम तालियों से हो गया।

“आज मेस खाली करना है। गुलाबजामुन बन रही थी।“ तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सुदीप चीखते हुए बोला।

“यार तू धीरे बोल, साला जब भी बोलेगा, गला फाड़कर ही बोलेगा। साइलेंसर लगवा ले अपने नल्ले में।“

बुरा लगने पर सुदीप छोटा सा चेहरा बनाकर चुप बैठ गया।

“अब तूने चेहरा क्यों लटका लिया?“

“अरे नहीं, इसकी तो सूरत ही ऐसी है।“ राहुल ने सुदीप को मुँह बनाते हुए चिढ़ाया।

“काशी हाउस! सुनो सब लोग, नीचे सीनियर भैया ने बुलाया है सभी को।“ किसी ने बाहर से आवाज़ लगाई।

“आ रहे हैं, इतना चीखने की क्या ज़रूरत है?“ शिवम ने खिड़की से नीचे झाँकते हुए जवाब दिया।

“तक्षशिला, उज्जैनी, नालंदा सभी पहले ही पहुँच चुके हैं।“ नीचे से फिर तेज़ आवाज़ आई।

“दो चार छोड़कर बाकी सब यहाँ से भी पहुँच चुके हैं।“

“तो तुम क्या कर रहे हो? तुम लोग भी आओ जल्दी।“ कहने के साथ ही आवाज़ आना बंद हो गई।

बार-बार उन्हें कोई न कोई आकर टोक ही देता था। उन्होंने कुछ देर और चर्चा की और फिर धीरे-धीरे सभी नीचे उतरने लगे।

कैंपस के बाहर सामने लकड़ियों का ढेर लगा था। होली जलाने की तैयारी हो चुकी थी। गल्र्स हाॅस्टल से कुछ लड़कियाँ अब भी अपने कैंपस से निकलकर आ रही थीं। पानी की टंकी वाली रोड यानी टीचर्स रूम से धीरे-धीरे शिक्षक चले आ रहे थे। लड़कियों की भीड़ के सामने पी.टी. मैडम सुरक्षा कवच बनकर खड़ी थीं।

कुछ ही देर में सभी इकट्ठे हो गए और फिर एक शिक्षक ने चार-पाँच मिनट के नीरस भाषण में अपने विचार रखे। शांत माहौल के बीच उनके आदेश
पर एक सीनियर ने लकड़ियों के ढेर पर आग लगा दी। देखते ही देखते आग की लपटें आसमान छूने लगी। रोशनी बढ़ने से सबके चेहरे साफ-साफ
दिखाई दे रहे थे। दो-तीन लड़के जो मेस से तेल का टिन उठाकर ले आये थे, लकड़ी की छड़ी से ज़ोर-ज़ोर से पीटने लगे और उनकी आवाज़ में कई
लड़के झूम-झूम कर नाच रहे थे।

मस्ती भरा माहौल देखकर भूमिका भी नाचने लगी लेकिन पी.टी. मैडम के घूरकर देखने पर उसने अपने आप को रोक लिया।

“अरे यार, तुझे इनके सामने डाँस दिखाने की क्या ज़रूरत है। पी.टी. मैम चिढ़ रही हैं।“ सुमन ने उसे कान पर कहा।

“होली तो सब मनाते हैं ना। मेरा मन किया तो डाँस करने लगी।“

“अपने मन को मार गोली, वरना मैम तुझे बहुत डाँटेंगी। जितना डाँस करना हो कमरे में कर लेना।“

“और ये तेल का डिब्बा, ये कौन लाएगा वहाँ?“

“अरे सुबह नाश्ते के समय ला लेंगे, फिर खूब डाँस कर लेना।“ सुमन ने जवाब दिया।

“लेकिन रात में?“

“ताली या चम्मच-प्लेट की आवाज़ पर डाँस कर लेना।“

“नहीं यार, उतना साउंड नहीं आता उसमें।“

“तो फिर किसी की स्टील की बाल्टी को ही पीटेंगे।“

“नहीं मुझे उस पीपे के साउॅंड पर ही डाँस करना है।“

“अरे तो कहा ना कि सुबह मेस से ले आयेंगे।“

आग की लपट और गर्मी इतनी बढ़ चुकी थी कि उन्हें हाथ चेहरे के सामने करना पड़ रहा था। वहीं लड़के आग के आसपास झूम-झूमकर नाच रहे
थे, कुछ अपने स्थान में ही ताली बजा-बजाकर देशी स्टाइल में थिरक रहे थे।

लगभग आधे घंटे तक नाच-गाना चलता रहा। तेज़ अंगारे से और गर्मी बढ़ गई थी। लगभग पूरा जलने के बाद पी.टी. मैडम ने लड़कियों को वापस चलने को कहा तभी भूमिका मौका देखकर लड़कों की तरफ पहुँच गई।

“भैया ये टिन दिखाइये प्लीज़…।“ भूमिका ने एक सीनियर से कहा।

शोरगुल के कारण सीनियर कुछ समझ नहीं पाए। जवाब न मिलने पर भूमिका ने टिन के डिब्बे को हाथ में पकड़ा और अपने साथ लेकर लड़कियों की भीड़ में वापस लौट गई। सीनियर का मुँह खुला का खुला रह गया। लड़कों ने टिन को पीटना बंद कर दिया, ताली बजना बंद हो गई और इसके साथ ही नाचने वाले लड़के भी रुक गए। अब केवल लड़कियों के कदमों में गति थी जो हाॅस्टल की तरफ बढ़ रहीे थीे।

“भूमिका तो आज राहुल और शिवम से डाँस करवायेगी।“ विवेक ने राहुल और शिवम को छेड़ा।

“राहुल और शिवम का डाँस वह भी गल्र्स हाॅस्टल में… कैसे?“ सुदीप ने पूछा।

“क्योंकि ये दोनों अच्छा डाँस कर लेते हैं।“

“कर लेते हैं या कर लेती हैं।“

“अबे विक्की, तू चुप कर।“ शिवम ने विवेक का कंधा दबाया।

“तो मेरे रहने से वो पीपा ठोकना बंद कर देगी क्या? देखा नहीं कितनी डेयरिंग के साथ अकेले आई और सीनियर के पास से उठाकर ले गई।“
“हाँ यार, पी.टी. मैम के सामने से अकेले आ गई। बाकी टीचर्स भी देखते रह गए। भाई इसे कहते हैं डेयरिंग।“ सुदीप ने तारीफ शुरू कर दी।

“चलो हम लोगों को भी ढेर सारा काम है।“ काफी देर से चुप सौरभ के मुँह से आखिर कुछ निकला।

वे लोग होलिका दहन से वापस लौट चुके थे।

“अरे यार अभी तो ढेर सारा काम रह गया है। सौरभ और विवेक तुम लोग अपना काम निपटा लो जल्दी वरना…“ शिवम ने कहा।

“ड्राइंग शीट कहाँ है, और स्केच पेन?“

“यहाँ रखे हैं सब।“ विवेक ज़ोर से चिल्लाया।

“तो फिर तुम लोग जुट जाओ और हाँ वो शायरी वाली काॅपी किसके पास है जो होली के लिए लिखी गई थी?“

“है ना, रखी है मेरे पास।“

सौरभ और विवेक टेबल के सामने बैठ गए।

“सबसे ऊपर होली स्पेशल लिखना है।“ विवेक ने कहा।

सौरभ ने स्‍केच पेन से सुन्‍दी डिजाइन बनाकर बड़े अक्षरों में लिख दिया।

“हाँ यह ठीक है। अब जो लिखना है उसे ऐसे लिखना है कि कोई तेरे अक्षर पहचान ना पाये यानी राइटिंग बदल कर।

ठीक!“

सौरभ ने धीरे से ड्राइंग शीट घुमाकर विवेक की तरफ कर दिया।

“क्या? यह क्या है? मैं लिखूँ? नहीं, मैं नहीं लिखने वाला। मेरी राइटिंग तो कोई भी पहचान लेगा।“ विवेक ने डरते हुए कहा।

“हाँ, अब क्या लिखना है?“ सौरभ ने मुस्कुराते हुए पूछा।

विवेक जब ड्राइंग शीट सौरभ की तरफ करने लगा तो सौरभ ने उसका हाथ पकड़कर रोक दिया।

“अरे क्या लिखना है यहाँ?“ सौरभ ने एक बार फिर पूछा।

तब विवेक ने काॅपी से कुछ पॅक्तियाँ पढ़ी,

“चीम-चीम चीमा, कैसे डाकू बने फिरता,
पढ़-पढ़कर पागल पैरों में उसके गिरता।
चेमिस्टंी की चाशनी जो भी ना समझ पाता,
पतली हरी छड़ी या बंदूक की गोली खाता।“

उल्टी तरफ से बिना किसी समस्या के जब सौरभ ने सही-सही लिख दिया तो आश्चर्य से विवेक की आँखें फट गईं।

“बाप रे, क्या टेलेंट है! लाइफ में मैंने किसी को इस तरह लिखते नहीं देखा।“ उसके मुँह से निकल पड़ा, “तूने ये कब सीखा? कोई पता कर कर के मर जाये लेकिन किसी को पता ना चले कि आखिर ये लिखा किसने है?“

“बस-बस बहुत हो गया। अब आगे बताओ क्या लिखना है?“

विवेक उसे बताते रहा और लगभग आधे घंटे में उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया।

“विभा, अब तू पढ़ना बंद कर बहुत हो गया।“ कहते हुए सुमन ने उसके सामने रखी किताब और रजिस्टर बंद कर अपने हाथ में उठा लिया।

“चल हो गया अब बाद में पढ़ लेना। ऐसे ही पढ़ते रहेगी क्या?“ विभा ने उसकी तरफ देखा तो सुमन फिर से बोल पड़ी।

“यार मेरा ज़रूरी काम था।“

“अपने काम को मारो गोली और हाँ, यहाँ किसी की बुक खुली नहीं दिखनी चाहिए। वरना… बुरा ना मानो होली है।“ भूमिका ने चेतावनी दी। इसके साथ ही सबकी पुस्तकें बंद होने लगी।

“चल रे छोटू, तू आ यहाँ।“ भूमिका ने निशा को अपने पास बुलाया। उसके पास आते ही भूमिका ने पलंग के पास, शेल्फ में रखी प्लास्टिक की बोतल लेकर माइक की तरह पकड़ा और कहा, “लेडिज़ एंड जेंटलमैन…।“

“जेंटलमैन? यहाँ कहाँ जेंटलमैन दिखाई दे रहे?“ विभा बोली।

“हाँ, वही…“ थोड़ा रुककर एक बार फिर, “डियर फ्रेंड्स! आज के होली स्पेशल डाँस में आपके सामने सबसे पहले स्टेज में हैं, अपने हाॅस्टल की सबसे चहेती दो खूबसूरत परियाँ एक मिस वल्र्ड सुमन और दूसरी मिस यूनिवर्स निशा.

..!“ भूमिका के ज़बरदस्त अंदाज़ से तुरंत तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। धीरे-धीरे उनका कमरा लड़कियों से भरने लगा।

उसने रुककर फिर कहा, “जो कि हमारे हाॅस्टल की सबसे फेमस डांसर भी हैं। तो लीजिये दोस्तों आपकी तालियों और सीटियों की मधुर गूँज के बीच हाज़िर हैं दो दिवास…।“ कहते हुए उसने टिन का डिब्बा पीटना शुरू कर दिया

लेकिन सुमन और निशा सामने चुपचाप खड़े रहे।

“यार, तुम लोग कभी भी भारी भीड़ में इंसल्ट कर देते हो मेरी।“ लेकिन सुमन और निशा को टिन की बेसुरी खटपट अटपटी सी लगी इसलिये वे खड़ी थीं।
“इस पीपे को सिर्फ ठोक देने से साउँड नहीं आता; बजाना पड़ता है।“ सुमन ने कहा।

“अरे यह वेलकम नगाड़ा था…“ भूमिका तुरंत बोल उठी, “अच्छा पीपा बजाने के लिए राहुल और शिवम को बुलाएॅं क्या यहाँ तब तुम लोग डाँस करोगे?“

“ठीक है, जैसा लगे वैसा बजाओ।“ सुमन ने भूमिका का मुँह अपने हाथ से दबाकर बंद करते हुए कहा। उन्हें केवल माहौल बनाना था बाद में तो सभी डाँस के लिए तैयार थे।

भूमिका के ढम-ढम बजाते ही दोनों ने भाँगड़ा शुरू कर दिया और फिर शानदार माहौल बन गया। लगभग सारी लड़कियाँ डाँस करते हुए खुशी में डूब चुकी थीं। काफी देर झूमने के कारण गर्मी बढ़ने और थक जाने पर जैसे ही सुमन रुकी, भूमिका ने पानी की बोतल जिसका माइक बनाया था, ढक्कन खोलकर उसके सिर में डाल दिया। अब उनकी मौज-मस्ती शुरू हो गई।

तभी अदिति कमरे के अंदर आई। उसे देखते ही विभा ने हाथ पकड़कर बीच में खींच लिया। अदिति को अपने सामने देखते ही सभी उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिये शांत हो गए।

“हमारी मिस इंडिया के लिए बिग हैंड्स।“ विभा के कहते ही एक बार फिर तालियाँ बज उठीं। टिन का डिब्बा, थाली, प्लेट, बाल्टी सभी की आवाज़ गूँजने लगी।

राहुल, शिवम, सुदीप और मोहित मेस की तरफ निकल पड़े थे। सुदीप के हाथ में स्टील की बाल्टी थी। वे पीछे से घूमकर मेस में पहुँचे ही थे कि उन्हें टिन के डिब्बे और लड़कियों की मिश्रित आवाज़ आने लगी। इसका मतलब था कि आसपास कई लोग जाग रहे थे और मेस में घुसने का वह सही समय नहीं था।

“उस कोने में अपनी बाल्टी रखकर आ जाना।“ राहुल ने सुदीप से कहा।

सुदीप ने वैसा ही किया और फिर वे गल्र्स हाॅस्टल की दिशा में बढ़ चले। उन्हें दबे पाँव जाने में मुश्किल नहीं हो रही थी लेकिन वे सतर्कता बरत रहे थे। पास पहुँचते ही उन्हें लड़कियों का शोरगुल सुनाई देने लगा।

“देखा ऐसे बजाते हैं पीपा। इसे कहते हैं डाँस।“ लगभग पाँच मिनट तक शांत खडे़ रहने के बाद मोहित ने कहा।

“ये लोग पीपा बजा नहीं रहे, ठोक रहे हैं, और डाँस तो ऐसे काॅन्फिडेंस से कह रहा है जैसे आँखों से देख रहा हो।“

“लगता है, सुमन का डाँस है। सुमन, सुमन की आवाज आ रही है।“

“डाँस नहीं, मुजरा।“ सुदीप ने कहा।

राहुल को उसके शब्द अच्छे नहीं लगे। उसने तुरंत गुस्से से नीचे पड़ा एक पत्थर उठाया और सुदीप की तरफ घूम गया।

सुदीप डर के मारे पीछे हटा लेकिन राहुल ने गुस्से में ताकत से सुदीप की दिशा में पत्थर फेंक दिया। अंधेरे में सुदीप को बचने का कोई रास्ता ना सूझा तो दोनों हाथों से अपना सिर छिपा लिया लेकिन तभी छनाक की आवाज़ आई और सामने गल्र्स हाउस वार्डन की खिड़की का काँच फूट गया। तब सुदीप समझ पाया कि उसने खिड़की का काँच फोड़ने के लिये पत्थर उठाया था।

“यह क्या कर दिया, तूने?“ शिवम ने दबी आवाज़ में पूछा।

“क्यों तुझे एक दिन का आधा घंटा याद नहीं है, जब बेवजह हमें दीवार से सटाकर खड़े रखा था।“ राहुल ने याद दिलाया।

“चलो यहाँ से जल्दी।“ कहते हुए सुदीप तेज़ी से निकल गया। उसके पीछे-पीछे शिवम, मोहित और राहुल भी लौटने लगे।

“अच्छा हुआ हम लोग तुरंत निकल लिए। यदि आवाज़ से दरवाज़ा खुल गया होता तो सब गड़बड़ हो जाती।“ सुदीप ने कहा।

“कोई नहीं निकलता। वो सामने वाले कमरे में नहीं बेडरूम मे सोते हैं।

“सोते हैं यानी?“

“वो और उनके वो।“

“अरे हाँ, वह तो सामने वाला कमरा था। मुझे भी पता है, मैं तो तुम्हें वहाँ से जल्दी निकलने के लिए ऐसा कह रहा था।“ सुदीप ने कहा।

“अब मेस चलकर देखें क्या?“

“नहीं, अभी नहीं। पहले रूम चलकर देखते हैं। यदि सौरभ और विवेक ने अपना काम कर लिया होगा तो दोनों काम एक साथ कर लेंगे।“ शिवम ने वाब दिया।

“मैं बाल्टी रख लूँ अपने साथ?“ लौटते समय सुदीप ने पूछा।

“नहीं अभी नहीं, हम रूम से तुरंत वापस आ जायेंगे।“

“तो चलो फिर रूम ही चलो।“

कुछ ही देर में वे सभी हाॅस्टल की तरफ बढ़े। दरवाज़े से अंदर जाते समय सबकी नज़र उनकी तरफ गड़ी हुई थी।

“बाल्टी कहाँ है?“ विवेक ने पूछा।

“तैयार हो गया तुम्हारा पोस्टर?“ जवाब देने के स्थान पर राहुल ने भी सवाल किया।

“हाँ, हो गया लेकिन यह तो बताओ कि बाल्टी कहाँ है?“

“बाल्टी तो छोड़कर आ गये।“

मिलेनियम नाइट्रस से संकलित

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